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मानव जितना विवेकशील प्राणी है उतना ही संवेदनशील भी, इसलिए हमारा शरीर जिस तरह नाना प्रकार की
बीमारियों की चपेट में जल्दी आ जाता है उसी तरह डिप्रेशन को भी आम बोल-चाल की भाषा में एक बीमारी के
तौर पर लिया जाता है | परन्तु यह बीमारी नहीं बल्कि मन की वह अवस्था है जिसमे मनुष्य नकारात्मक रूप से हर
बात को देखता और समझता है | उसे जीवन से विरक्ति हो जाती है | ऐसे में जरुरी है की इस तरह के निगेटिव सोच
वाले व्यक्ति को समय रहते समुचित इलाज उपलब्ध कराया जाये |
यह कहना उचित नहीं होगा की डिप्रेशन आधुनिक युग की
देन क्योकि प्रकृति ने महिलाओ को ज्यादा संवेदनशील बनाया है और वह जल्दी ही तनाव की शिकार हो जाती है
इस तरह के मामले में आपसी संवाद की कमी , सामाजिक और आर्थिक असुरक्षा की भावना एक महत्त्व-पूर्ण भूमिका
निभाते है | अत: जरुरी है की बीमारी के पकड़ में आते ही अच्छे मनो-रोग चिकित्सक की सहायता ली जाये बात-चित
और काउंसलिंग के जरिये बहुत हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है | पुराने समय में और आज भी अंध –
विश्वास के चलते यदि कोई महिला इसके चपेट में आती है तो भूत- प्रेत तथा चुड़ैल का साया जानकर उन्हें ओझा -सोखा
से झाड़-फूंक कराया जाता है | सोचिये यदि मन-मस्तिष्क पर ज्यादा दवाब बढ जाये तो क्या मानसिक संतुलन नहीं
डगमगा जायेगा इसलिए डिप्रेशन को लाइलाज बीमारी न मानकर समय रहते इसका इलाज कराया जाये तथा माहौल
को स्वस्थ बनाने की कोशिश की जानी चाहिए |
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