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खेल बना व्यवसाय ,नक्सलवाद तमाशा

सीधी बात
सीधी बात
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क्रिकेट आज भले ही आईपीएल के रूप में ग्लैमर का तड़का मार कर पूरे देश के सामने खेला जा रहा हो मगर सच तो यह है कि क्रिकेट जैसा खेल अपने -आप में इतना ग्लैमरस रहा है कि रेडिओ -ट्रांजिस्टर पर चिपक कर कमेंट्री सुनने वालो से लेकर हर मैच कि ताज़ा -तरीन जानकारियों के लिए घंटो टीवी सेट पर नजरे गडाए बैठने तक के लिए हर भारतवासी सदा से ही दीवाना रहा है | और शायद यही वजह है कि व्यवसायिक बुद्धि के चलते इस खेल से करोणों कमाने का जो दमदार आइडिया आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के समझ में आया उसी के चलते देखते -देखते एक मनोरंजक खेल जिसने बौलीवुड फिल्मों के सामानांतर लोकप्रियता हासिल की थी अपने ही देश में दस टुकड़ो में बटकर लीग के रूप में अलग राज्य ,अलग क्षेत्र और अलग टीम के रूप में खेला जाने लगा |पैसे की झमाझम बारिश , चियर्स गर्ल्स के लटके -झटको ने इस खेल की आत्मा को निगल लिया हालत यह है कि जो क्रिकेट कभी जाड़े की नर्म धूप सा एक गुनगुना एहसास देता था वही आज भ्रष्टाचार ,आरोप -प्रत्यारोप ,सट्टेबाजी के कीचड़ में गोते खा रहा है |
इसका जिम्मेदार कौन है ? भले ही आज थरूर और मोदी के विवाद के चलते यह एक सनसनीखेज न्यूज बन गया हो मगर इसका नतीजा क्या निकलेगा ? करोडो का वारा -न्यारा करने वाले बिजनेस -क्लास और उनके पैसो के जरिये राजनीति करने वाले राजनितिक पार्टिया क्या सच्चाई देश के सामने ला पाएंगे ?कुछ
दिनों की ब्रेकिंग न्यूज के बाद मामला फिर वही ठन्डे बस्ते में चला जायेगा |
दूसरी ओर अभी हफ्ता भी नहीं गुजरा दंतेवाडा में जो बर्बर नरसंहार हुआ छिहत्तर जवानो को दलित और पिछडो के रहनुमा बनने वाले नक्सलवादियो ने जिस तरह उनकी निर्मम हत्या की वह बताता है कि कि स विकास और तकनीक के मुहताज है यह नक्सलवादी पूरी तरह से जाल बिछा कर अपने कार्य को अंजाम देने वाले नक्सलियों से हमदर्दी का क्या मतलब ? देश के गृहमंत्री कि कार्य – प्रणाली पर उनके ही दल के लोग यदि सवाल उठाने लगे तो क्या इससे नक्सलवादियो के हौसले नहीं बढेंगे ? यह समय है कि ख़ुफ़िया -तंत्र को मजबूत किया जाये न कि राजनितिक नफा – नुकसान को देखा जाये हर राज्य कि जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र के विकास पर ध्यान दे न कि नक्सलवादियो के सामने घुटने टेके यदि ऐसा लगता है कि वह विकास कि दौड़ में पीछे रह गए है तो उन्हें मुख्यधारा में लेन का काम. किसका है ?

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