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क्या मौत भी किसी को प्रतिष्ठा दिला सकती है !!!

सीधी बात
सीधी बात
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वाक्य है जिसने सबको उलझन में डाल दिया है कोई इसके पक्ष में तो कोई इसके विपक्ष में खड़ा नजर आ रहा है दिलचस्प बात तो यह है की इस “सम्मान जनक -मौत ” पर एक बढ़िया ब्लौग अभी -अभी ” allrounder”साहब ने लिख डाला और उस पर बुद्धिजीवी पाठको के विचार भी मांगे भई मै तो बौद्धिकवर्ग की हूँ नहीं इसलिए अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए खुद से ही कुछ लिखा जाये ऐसा सोच कर थोडा बहुत रिसर्च करके जो समझ में आया मैंने लिख डाला आखिर यह कमबख्त “औनर -किलिंग ” है क्या बला ! बहुत दिन नहीं हुआ नोयडा की आरुषि हत्या -कांड एक ऐसा हाई प्रफाइल मर्डर केस था जिसने सबके होश उड़ा दिए इस केस को ले कर मीडिया ,सी बी आई ,सी आई डी और स्वयं तलवार दंपत्ति भले ही दुनिया भर की दलील देते फिरे क्या इस देश का आम आदमी मुर्ख है जो समझ नहीं पा रहा कि घर के अन्दर किसी बच्ची की हत्या हो जा रही और घर वालो को कुछ खबर तक न हो फिर घर परिवार
का मतलब क्या ?इसे आप “औनर -किलिंग” का नाम दे सकते है की कुछ ऐसा हुआ उस बच्ची के साथ जिसने घर की
प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाया और उसके चलते आरुषि की बलि चढ़ा दी गयी क्या इस हत्या कांड में मौ -बाप की कोई
भूमिका नहीं है ? उम्र के जिस पड़ाव पर एक मौ अपनी बेटी की सही मार्गदर्शक और दोस्त बन जाती है सही गलत का फैसला लेन का अंतर करना सिखाती है क्या उस बच्ची को वास्तव में उस मौ की ममता की छत्र -छाया मिली ? अथाह पैसा कमा   कर सिर्फ विलासिता के साधन जुटाने वाले माता -पिता के पास बच्चे के लिए समय न हो तो आया और नौकर के भरोसेपलने वाले बच्चे कब रास्ता भटक जाये यह तो कोई नहीं जानता परिवार टूट रहा है ,समाज बिखर रहा सोलह वर्ष कीबच्ची की जान लेना त्वरित आक्रोश का दुष्परिणाम था क्या इस हत्या से किसी परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ गयी ?
आजकल के युवा यदि अपनी पसंद से शादी ब्याह करना चाहते है तो तो उसमें बुराई क्या है ?
माता -पिता को इतनी आजादी तो देनी ही चाहिए लेकिन अपनी पसंद को सामाजिक स्वीकृति दिलवाने की कोशिश
तो हर युवा को करनी ही चाहिए माता -पिता को भरोसे में लिए बिना किसी रिश्ते को अंजाम तक नहीं पहुचाया जा
सकता अगर माता -पिता को लगता है की चुनाव सही नहीं है उनके बच्चे का तो समझाए और नहीं समझ में
आ रहा है तो भगवान भरोसे छोड़ दे प्यार का नशा जब उतरेगा तो खुद रास्ते पर आ जायेंगे मगर उसके चलते
जान लेने की जरुरत क्यों पड जाती है देर -सबेर सबको सब कुछ समझ में आ जाता है

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