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बेहद शर्मनाक और खराब दौर से गुजर रहा है देश एक तरफ संसद में अपनी ईमानदारी और गठबंधन धर्म की दुहाई देते लाचार प्रधानमंत्री को देश की जनता देख रही है दूसरी तरफ कॉमन वेल्थ गेम घोटाला ,२ जी स्पेक्ट्रम घोटाला से गुजरते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जिस तरह cvc थामस की नियुक्ति को ख़ारिज किया है उससे स्वयं प्रधानमंत्री संदेह के घेरे में आ चुके है देश जिस इमानदार और विद्वान् अर्थशास्त्र के ज्ञानी मनमोहन सिंह जी पर भरोसा कर रही थी उनकी लाचारगी ,बेचारगी तथा अपने ही पार्टी के साथियों द्वारा गुमराह किये जाने पर सवालों का उठना लाजिमी है अब क्याबाकी रह गया है बताने को सब कुछ तो तो आईने की तरह साफ है कठपुतली बन कर अपनी डोर दूसरे के हाथ में थमा देना किस बुधिमत्ता का परिचायक है एक तो सुरसा की मुंह की तरह बढती मंहगाई शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरुरी आवश्यकता
को मुहताज जनता जब भ्रष्ट्राचार और घोटाले जैसी खबरों को हर दिन देखती सुनती रहती है तो भले ही हर पाँच साल पर चुनावी प्रक्रिया के जरिये अपने को लोकतंत्र का सजग प्रहरी मान सत्ता के संचालन में अपनी भागीदारी का जश्न मना लेती हो मगर सत्ता पर काबिज इन कलमाड़ी तथा डी राजा और मुख्य सतर्कता आयुक्त जैसे भ्रष्ट लोगोके चेहरे से जब नकाब उठता है तो सरकार पर से भरोसा भी उठ जाता है
देश के प्रधानमंत्री की जवाबदेही पूरे देश के प्रति है कि उनकी निष्ठा किसके प्रति है कुर्सी के प्रति या देश के प्रति ?
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