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निगमा नन्द की शहादत से उपजे सवाल – jagranjunction forum

सीधी बात
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पिछले दिनों गंगा प्रदूषण से जुड़े मुद्दे पर सरकारी मशीनरी की अनदेखी के चलते निगमानंद नामके जिस संत ने अनशन के दौरान कोमा में चले जाने के कारण अपनी जान दे दी उसने सिर्फ व्यवस्था नही बल्कि मीडिया प्रशासन तथा आम जन सभी को प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर दिया पहली बात पर्यावरण प्रदूषण आज सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरा है चाहे वे ई- कचरा हो या फिर प्लास्टिक कचरा या फिर वातावरण में बढ़ता दम घोट देने वाली खतरनाक गैसे आखिर पर्यावरण को नुकसान पहुचने वाली इन तमाम अवरोधों को मात्र किसी भी व्यक्ति की निजता तक सीमित करके नही देखा जा सकता दूसरीबात आखिर सरकारी मशीनरी से ले कर मीडिया और उस क्षेत्र से जुड़े पत्रकार या अन्य समाजसेवी गंगा में बढ़ते प्रदूषण को ले कर किस हद तक चिंतित है इन सभी बातो की गंभीरता को समझने की जरुरत है |
जहा तक प्रशासन की उपेक्षा की बात है तो किसी भी मुद्दे को जो राष्ट्र हित से जुडा हुआ है उसको ले कर जब तक किसी भी आम आदमी तक के अंदर जागरूकता नही आएगी तो इस तरह की आत्मोत्सर्ग की घटनाये कुछ दिनों तक सनसनीखेज खबरे बन कर छाई रहेंगी और उसके बाद वक्त के साथ इस पर भी धूल की परते जम जाएँगी दरअसल हर आदमी बस हमारे राजनीतिक दलों की तरह दोषारोपण या दूसरे में दोष ढूंढने की कवायद में लगा हुआ है जिस जगह या जिस व्यवस्था से हम जुड़े हुए है हर आदमी चाहे तो वही से थोडा प्रयास करे तो भी क्या कुछ हद तक चीजो को सही नही किया जा सकता है प्लास्टिक थैलियो का प्रयोग क्यों कर रहे है हम ? जबकि मालूम है ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है अवैध खनन यदि किसी भी खदानों या पहाड़ो पर हो रहे है तो जाहिर है इसके पीछे उन्ही लोग का हाथ होता है जो हर किसी भी चीज को रिश्वत दे कर खरीद सकते है तो ऐसे मुद्दे से जुड़े इंजीनियर और ठेकेदारों को ले कर करवाई क्यों नही की जाती ?
अंतिम और जरुरी बात यह है कि आज सूचना तथा तकनीक कि क्षेत्र में आई क्रांति के चलते जो भी जनहित से जुड़े मुद्दे है चाहे वे शिक्षा या फिर भ्रष्ट्राचार या भ्रमित कर देने वाले विज्ञापन या फिर सरकारी नीतियों के चलते मात्र पेंशन प्राप्त करने तक कि अनियमितताओ को पुरजोर आवाज में उठाया जा सकता है फिर अनशन या आन्दोलन जैसी बातो का सहारा लेने कि क्या जरुरत जितना हो सके अपनी बातो को पूरी निडरता तथा सशक्त तरीके के साथ उठाने के कारणों पर विचार करना जरुरी है
अंत में सन्यासी निगमानंद को एक विनम्र श्रद्धांजली के साथ इस मुद्दे कि गंभीरता पर ध्यान कि जरुरत …..

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