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शुरू -शुरू में मुंबई आने वालो को यह शहर वाकई चौकाता है क्योकि आप जैसा फिल्मो में में देखते है वास्तव में यह शहर बिलकुल अलग है और इसका अहसास हुआ जब मुझे अपने पति के साथ यहाँ आने का मौका मिला क्योकि उनको यहाँ एक कम्पनी में काम करना था बतौर सीईओ जाहिर है उत्तर -प्रदेश से इधर आ कर रहना अपने दो बच्चो के साथ कुछ तो लोग इस माया नगरी के बारे दुनिया भर की अफवाह फैला रखे थे अरे! वहाँ संभल कर रहना , किसी अजनबी से बहुत घुलना मिलना नही मसलन डराने की सारी कवायद ! ऐसे बिन मांगे मुफ्त की सलाह देने वाले ज्ञानीजन आपको खूब मिल जायेगे खैर फिर शुरू हुयी जिन्दगी और रोजगार के बीच की जद्दो -जहद मै सोचती थी कैसा शहर है यह जहाँ सुबह होते -होते
बस और लोकल पकड़ने की हडबडी में लडकियाँ , महिलाये और पुरुष सभी लग जाते मगर जो बात सबसे अच्छी लगती थी सभी एक -दूसरे की मदद को हमेशा तैयार शेअर रिक्शा , शेयर टैक्सी का चलन इतना बढ़िया लगता है कि आप रिक्शे में अकेले बैठे है तो उस ओर जाने वाले वाला आपसे पूछेगा स्टेशन ? यदि आपने हाँ कहा तो साथ चल देंगे फिर मीटर देख कर अपने हिस्से का किराया दे देंगे शायद ये इस व्यवसायिक शहर का अपना मिजाज है पति जब सुबह – सुबह काम पर निकल लेते थे अपने बच्चो को स्कूल पहुचाना उनका होमवर्क उनके साथ उनकी शरारते उनकी बाते सबसे बड़ी बात मेरा बेटा कहानीसुनना पसंद करता था कितनी कहानियाँ सुनाती फिर मैंने राजा -रानी से ले कर तोता -मैना ,बादशाह फकीर और राम -सीता से ले कर कृष्ण -राधा तक की कहानिया सुना डाली मैंने इस बात को महसूस किया कि बच्चे बहुत चाव के साथ हर बाते सुनते है अगर उन्हें कहानी कि तरह कुछ भी बताया जाये तो वे ध्यान देते है खैर बहुत व्यस्तता रहती थी मगर जिन्दगी का हर पल हमेशा जीना चाहिए और अपने बच्चो के साथ रह कर उनके बाल मनोविज्ञान को समझना आपके अनुभव को बढाता है और शायद यही उम्र का वह नाजुक दौर होता है जहाँ पैरेंट्स कि भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है | खैर उस समय जब भी कोई मेरे घर -परिवार से आता था तो अच्छा लगता था एक दफा मेरे घर से भाई -भाभी आये थे उन्हें ले कर लोकल में चर्च गेट तक गयी पतिदेव फिर वहा स्टेशन पर आ गये हम सब बहुत घुमे – फिरे फिर घर वापस आ गये इस दौरान मेरी बच्ची जो उस समय नर्सरी में पढ़ती थी पहली बार उसे लगा कि उसके पापा कितनी दूर आते -जाते है उसने सवाल किया अपने पापा से पापा तुम रोज इतनी दूर आते जाते हो क्या तुम थक नही जाते ? यह होती है बेटियों की समझ ! मेरे पति ने कहा भी सिर्फ मेरी बेटी को ही मेरी कद्र है कम से कम उसने तो महसूस किया कि उसके पापा कितना मेहनत करते है |
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