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जन लोकपाल बिल एक ऐसा मुद्दा जिसमें चल रही बहस कई मोड़ से गुजरते हुए आज सरकार तथा तथा सिविल सोसायटी के एक बहस में उलझ कर रह गया है दरअसल जब यह बहस भ्रष्ट्राचार हटाने की मुहिम से जुड़ा दिख रहा था तो पूरे देश ने जो एकउत्साह भरा रुख दिखाया केंद्र सरकार ने भी अन्ना हजारे की मुहिम पर अपना समर्थन दिया मगर भ्रष्ट्राचार से निबटने के लिए सिर्फ उपरी स्तर पर नही बल्कि हर स्तर पर प्रयास जरूरी है सबसे बड़ी बात इस लोकपाल बिल को ले कर जो सवाल उठा है वह है कि क्या प्रधानमन्त्री और प्रधान न्यायधीश को भी लोकपाल बिल के दायरे में लाया जाये या नही इस मुद्दे पर कोई सहमति नही बन पा रही है क्योकि भ्रष्ट्राचार के मसले पर सीधे तौर पर जबतक कोई व्यक्ति इसमें लिप्त नही पाया जायेगा तो मात्र नैतिक आधार पर किसी को कठघरे में खड़ा कर देने का कोई मतलब नही मगर जब तक यह कानून नही बनेगा कि यदि कोई भी जज या प्रधान मंत्री के ऊपर आरोप लगाये जा रहे है तो उन पर तुरंत जाँच की अनुमति मिलनी ही चाहिए आखिर 2G स्पेक्ट्रम घोटाले से ले कर कामन वेल्थ गेम्स तक के घोटाले में प्राइम मिनिस्टर के ईमानदार छवि को धक्का लगा ही सबसे बड़ी बात पिछले दिनों यह सवाल उठा की यदि भ्रष्ट्राचार पर सवाल उठाना ही है तो सबसे पहले अन्ना को चुनाव लड़ कर एक जन प्रतिनिधि के रूप में जनता के बीच में आना चाहिए हास्यास्पद है यह तर्क कि यदि कही चोरी ,लूट , घोटाला जैसी बातो पर यदि सभी को जागरूक करना है तो पहले आप विधायक या नेता बनिए ! यह ठीक है कि संसद में ही सभी कानून बनते है और उन्हें हमारे सासदो कि अनुमति मिलती है तभी कानून बनांते है मगर जब कानून कि हर काट सभी के पास मौजूद है तो भला सजा किसे मिल पायेगी एक सक्षम कानून बनवाने का काम सत्ता और विपक्ष दोनों का है मगर चूँकि यह मामला आम आदमी के हक़ तथा घोटालेबाजो और नौकरशाहों के पोल खोलने से जुड़ा हुआ है इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे है सरकार का आरोप की अन्ना एक समानांतर सरकार चलाने का प्रयास कर रहे है मगर न्याय पालिका में बढ़ते हुए भ्रष्ट्राचार की खबरों के आधार पर आखिर न्यायधिशो को क्यों नही जाच के दायरे में आना चाहिए संविधान ने सांसदों को यह अधिकार दिया है की संसद में उनकी गतिविधियों की जाँच नही हो सकती मगर यही अधिकार जब कवच बन जाये तो उसके लिए क्या उपाय है.
मगर अन्ना हजारे की इस मुहिम को आम लोगो तक पहुचाने की जरुरत है और इसके लिए शिक्षा का प्रचार -प्रसार जरुरी है एक तो चाटुकारिता और चमचागिरी के सहारे हर कोई आगे बढना चाहता है इसका सबसे बड़ा कारण है की जतिवादिता , क्षेत्रवादिता और भाषा के आधार पर राजनीति की जा रही है अन्ना ने अनशन के बारे में कहा है अगर उनकी मांगे जोकि देश हित में है नही पूरी की गयी तो क्या अन्ना का अनशन पर बैठना ठीक होगा ? तो क्यों ऐसी नौबत आये की फिर अन्ना जैसे समाजसेवी को अनशन पर बैठना पड़े …….
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