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“बासन्ती अभिलाषा”

सीधी बात
सीधी बात
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saraswati4


हे श्वेतवसना ,हंसवाहिनी |
ज्ञान की धारा बहा
निर्झर प्रपात,निर्मल प्रवाह |
तिमिर के बादल हटा
विस्तृत हो उजियारा विवेक का |
दिग़-दिगन्त में प्राण डाल
दुःख के बादल न आये |
तू राग छेड़ आल्ह्यद का
कमल पुष्प सा मन बना |
वीणा का गुंजित स्वर बहा
विश्व -बंधुत्व का राग गा |
बसंत का आगत मना
पुरबहार जलवा तू मन लुभा |
हे भ्रमर तू गीत गा
बौर आम वृक्ष सजा |
भूल कर हर राग ,द्वेष
कदम से कदम मिला |
गाये सभी प्रेम गीत
बगिया सजे प्यार का |
वाग्देवी प्रसन्न रहे
है यही अभिलाषा सदा |

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