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कयास लगाने से चुनावी समीकरण नही बदलते (jagran junctionfourm )

सीधी बात
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इस समय उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में जो घमासान छिड़ा हुआ है वैसे तो हर एक दल अपना पूरा जोर -शोर और ताकत लगा कर इस चुनाव में विजय हासिल करना चाह रहे है मगर जिस तरह से कांग्रेस पार्टी के राहुल गाँधी ने मोर्चा सम्भाल रखा है उस पर सभी की निगाह टिकी हुयी है मगर यूपी की जमीन पर आसानी से किला फतह करना इतना आसान नही है दरअसल यहाँ पर मुकाबला कड़ा है जहाँ तक बसपा की बात हम करे भले ही भ्रष्ट्राचार के कितने भी मामले हो वर्तमान मुख्यमंत्री मायावती के ऊपर और कुशासन की जितनी भी दलील दी जाती रही ही राजनैतिक रूप से मायावती का कद बहुत ऊँचा है दलित समाज उन्हें अपना मुखिया मानता है और वे एक भी ऐसा मौका नही छोडती जबकि उन्हें अपने प्रतिद्वंदी पर खुल कर वार करना हो उनकी यह आक्रामक शैली उन दबे कुचले समाज में जोश भरने के लिए काफी होता है फिर अभी उनकी पकड़ जनता या प्रदेश पर कमजोर नही पड़ी है |दूसरी है मुलायम सिंह की पार्टी जिसकी कमान उनके युवा बेटे अखिलेश यादव ने सम्भाल रखा है और यह सभी लोग उसी क्षेत्र और प्रदेश के है जाहिर है ये अपने गढ़ में मजबूती से पैर जमा कर खड़े है भाजपा की स्थिति के बारे में आंकलन थोडा मुश्किल है फिर जिस प्रदेश में जांति-पांति की क्षेत्र -धर्म की राजनीति हावी हो वहाँ वोटो का बंटवारा तो वैसे ही तय है फिर भी लाल कृष्ण आडवानी से लेकर राष्ट्रिय अध्यक्ष नितिन गडकरी ,राजनाथ सिंह उमा भारती तथा प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही जैसे दिग्गज मैदान में आ चुके है जाहिर है यह राजनीती के मंजे पुरोधा है इन सब से मुकाबला करने में कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत है की सारे कर्ता-धर्ता स्वयं राहुल या प्रियंका गाँधी ही है उनकी पार्टी में कोई भी ऐसा नेता नजर नही आता जो जमीनी रूप से उस प्रदेश की जनता तथा आम आदमी के बीच में लोकप्रिय हो इसलिए भले ही राहुल गाँधी की मेहनत कुछ रंग लाये या प्रियंका की सभाओ में भीड़ जुटती हो यह कहना अत्यंत मुश्किल है की इन सब के चलते कांग्रेस पार्टी को कितनी सीट मिलेगी या उसका क्या परिणाम होगा |

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