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बाला साहेब ठाकरे एक जादुई व्यक्तित्व , एक ऐसी छवि वाले नायक जिन्हें देख उनके भाषणों को सुन कर लोग किस तरह से उनसे प्रभावित हो उठते थे इस के बारे में कुछ भी लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान है हाँ मुंबई महफूज नहीं है क्यों क्योकि यह देश की आर्थिक ,व्यावसायिक तथा बालीवुड की नगरी है कहते है कि मुंबई सभी को जीना सिखा देती है मगर मै कहती हूँ कि इस शहर में लोग किस तरह से सिर्फ कमाने आते है वे लड़किया जो फिल्मो में किस्मत आजमाने आती है बड़े -बड़े सपनो के साथ उनमे कितनो को सुनहरे जिन्दगी का सपना दिखा कर यह मायानगरी उन जगहों पर भेज देती है जहाँ से लड़कियां कहाँ जाती है पता ही नहीं चलता माफिया आतंकवाद इन सभी का खतरा तो इस शहर पर मंडराता ही रहता है जाहिर है ऐसे में मुंबई को सुरक्षित रखने के लिए सभी को कमर कसनी ही पड़ेगी राजनीति के चलते ऐसे में बाला साहेब जैसे नेता ने बिना चुनाव लड़े जिस तरह से अपना कद बनाया यह उनके अंतिम यात्रा में उमड़े जन सैलाब को देख कर पता चल गया होगा कहते है की जो ग़लत होगा उसे सभी लोग ग़लत ही लगेंगे इसलिए उनके तीखे तेवर तथा कलेवर की भी खूब धज्जिया उड़ाई जाती रही है खासतौर पर उनके दशहरा रैली में दिए जाने वाले भाषणों को ले कर मगर सीधे -सीधे अपनी बात कहना और सही तथा सटीक तरह से उन शब्दों का चुनाव करना जिससे वे अपनी बातो को उन लोगो तक पहुंचा सके जो उन्हें अपना नायक मानती है
अंजुली भर श्रधा !!
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