सीधी बात
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कुछ बाते ,कुछ यादे कुछ जीवन की राहें यही थे थोड़े से अरमां हमारे
राहों में बिखरे थे जो चाँद ,तारे
उठा लिया हमनेबिना कुछ इरादे
जीवन की इस आपाधापी में
खो गए सब मोती बन के
सागर में ढूंढा,जीवन में ढूंढा
कही न मिले वे बिछड़े तारे
राहों में भटक रही थी
अपने आप में गुम थी
एकाएक पानी की तरल लहरों ने छुआ
समुन्द्र के विशाल लहरों को देखा
उसकी भव्यता को नमन करके
मन ने यह सोचा
कब मांगता है वह अपने
होने की कोई वजह
देनदार इतना बड़ा
कि लौटा देता है
उसकी गोद में कुछ भी
डालदो हीरे -मोती से लेकर
मानिक मणि तक
क्यों नहीं सीख पाते
उसकी तरह तरल मन सरल जीवन
से ले कर उदारमन होने कि बाते
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