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उपयोग तथा उपभोग के अंतर को समझना जरुरी है (jagran junction forum )

सीधी बात
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आये दिन हमारे आस- पास घटने वाली घटनाओ में छोटी बच्चियों के साथ किये जाने वाले अमानुषिक घटनाओ को समाज में आ रहे चारित्रिक तथा नैतिक पतन के नजरिये से देखा जाये और शीघ्र ही इस बढ़ते हुए कदमो पर यदि तुरंत रोक न लगाया जाये तो हम लाख विकासशील होने के नित नए आयाम भले ही गढ़ ले हम वास्तव में एक ऐसे समाज बनाने की ओर बढ़ रहे है जिसका वास्तव में कोई चरित्र तथा ईमान नहीं होगा दरअसल इस तरह की घटनाओ के मूल में यदि जाये तो हम पाएंगे कि बच्चियां एक आसान और सहज माध्यम है जो ऐसे दरिंदो के कब्जे में आ जाती है जो अधिकतर पास -पड़ोस के युवा तथा बिगड़े हुए लोग होते है या फिर दूर -दराज के रिश्तो में इस तरह कि घटनाये होती है | दरअसल हमारा सामाजिक ढांचा पूरी तरह से बिगड़ चुका है ,परिवार टूट रहे है बड़े बुजुर्ग अब घरो में नहीं वृद्धाआश्रम में रहने को विवश है तथा अच्छी नौकरी कि लालच में अपने घरो को छोड़ कर जो लोग दूसरे शहरो में बस रहे है उस अपरिचित माहौल में बहुत कुछ गलत हो रहा है |
आधुनिकता को दोष देना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है पर्दा प्रथा तो भारतीय संस्कृति का कभी हिस्सा रहा ही नहीं गार्गी ,पाणिनी तथा अन्य विद्य्वान महिलाये ऋषि ,मुनियों के साथ बैठ कर शास्त्रार्थ करती थी सोचिये वह कितना आधुनिक काल रहा होगा हाँ बड़े ,बजुर्गो तथा विद्य्वानो का आदर सम्मान जरुर हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है मगर आज आधुनिकता का दम भरते हुए हमने आदर ,सम्मान को भुला दिया है खैर हम इस दौर कि बात यदि करे तो यह पाएंगे कि एक जो बहुत बड़ा फर्क जो हमारे रहन -सहन तथा सोच -समझ में आया है वह है कि हमने अपने जीवन में उपभोग तथा उपयोग के अंतर को मिटा दिया है | एक अजीब आपाधापी मची है कि हर कोई किस तरीके से कितना ज्यादा कमा सकता है ज्यादा पैसा कमाने के लोभ ने हर व्यक्ति को विवेक शून्य बना दिया है किसी के पास सही गलत को मापने का वक्त नहीं है अपने बड़े होते बच्चो को समय देने का वक्त नहीं बचा है और टेक्न्लाजी की तरक्की ने पूरा कोक शास्त्र खोल कर रख दिया है जाहिर है औरत और उसके शरीर से जुड़े रहस्यों को जानने की बाल जिज्ञासा बढती जा रही है युवा होते बच्चो को इधर-उधर से आधी -अधूरी जानकारी से विकृत मानसिकता का जन्म होने लगा है और नतीजा छोटी ,मासूम बच्चियां भी आज सुरक्षित नहीं है | एक जो दूसरा बड़ा परिवर्तन देखने में आ रहा है वह है कि अब पहले के जैसे गाँव नहीं रहे गाँवो में लोग नहीं रहे जहाँ एक खुला खेत खलिहान हुआ करता था और बच्चे पेड़ो पर चढ़ कर या दौड़ -भाग करके अपना समय गुजारते थे अब तो हर कोई बड़े मेट्रोपोलिन शहरों कि ओर भाग रहा है और घर का कोई भी सदस्य यदि काम-धंधे में लग गया है तो उसके लिए आसान होता है कि अपने रिश्तेदार या नातेदार को भी बुला कर रखे सभी नहीं मगर ज्यादातर मामलो में छोटे शहर तथा गाँव से आये युवा भी इन बड़े शहरो का खुलापन तथा तेजी से भागती -दौड़ती जिन्दगी को देख कर उसकी चकाचौंध में गलत रस्ते पर चल पड़ते है मुंबई जैसे शहर की बात यदि हम करे तो यहाँ हर दूसरा युवक फिल्मो में किस्मत आजमाने आता है उन्हें फिल्मो में कोई काम मिले या न मिले वे या तो अपराध की दुनिया का रास्ता पकड लेते है या फिर ऐसे गलत कामो में उलझ जाते है जिसके चलते मात्र बच्चियां ही नहीं वरन बड़ी ,बुजुर्ग महिलाये भी इनकी शिकार बन जाती है इसलिए पहनावे ओढ़ावे को दोष देने का कोई मतलब नहीं है दरअसल अब माता -पिता को जागरूक होने का समय आ चुका है वे कुछ बातो का ख्याल रखे —
1 – अपने छोटे बच्चो को निगरानी में रखे |
2 – अधिकतर समय अपने बच्चो के साथ गुजारे |
3 – बच्चियों को कितना भी विश्वास पात्र व्यक्ति हो अकेले उसके साथ आने -जाने न दे |
4 – किसी भी बिल्डिंग के वाचमैन को बहुत ज्यादा बच्चियों के साथ खेलने न दे उस पर नजर रखे |
5 – स्कूल बसों में ड्राइवर तथा क्लीनर को ताकीद करे कि बस में बच्चो कि निगरानी करे उन्हें प्यार -दुलार करने कि जरुरत नहीं है |
6 – स्पर्श कि भाषा बच्चो को समझा कर रखे कि यदि किसी भी व्यक्ति का छुना उन्हें अच्छा नही लगता तो भरपूर विरोध करे |
7 – पैरेंट्स अपने बच्चो कि बातो को सुने यदि वह किसी अजनबी अंकल नुमा व्यक्ति के पास बच्चा
नहीं जाना चाहता तो जानने कि कोशिश करे आखिर ऐसा क्यों बच्चा कर रहा है |
8 – अपने बच्चो कि हिफाजत स्वयं करे उसे दूसरो के भरोसे न छोड़े|

ऐसे ही कुछ जरुरी उपायों के द्वारा अपने बच्चो /बच्चियों कि सुरक्षा करने कि कोशिश करे |

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