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आज अरविन्द केजरीवाल बिजली -पानी के मुद्दे को ले कर जिस तरह से उपवास पर बारह दिन से बैठे हुए है उसे छलावा कहना पूरी तरह से गलत होगा आखिर भ्रष्ट्राचार की इस लड़ाई में हर कोई भले ही उनका साथ छोड़ दे जब एक ईमानदार और अपने को पूरी तरह से देश के लिए समर्पित लोग जब भी इस तरह का कोई भी कदम उठाते है तो जाहिर है उनका मजाक उड़ाना और उन्हें गलत ठहराना हर किसी व्यक्ति को बहुत आसान लगता है मगर सच तो यह है कि केजरीवाल का अनशन दिखावा नही है हाँ भारी भीड़ का न जुटना भले ही उन्हें जननायक न बनने दे मगर जिस तरह से वे दृढ प्रतिग्यदिख रहे है यही वह कारण है जो उन्हें आम से खास बना रही है आखिर क्या कारण है कि अच्छी -भली नौकरी छोड़ कर समाज सेवा में लगने का मार्ग चुनने की सनक सवार हुयी दरअसल यही एक इच्छा शक्ति होती है जो कठिन होती है मगर आज जरुरत है तो केजरीवाल जैसे व्यक्ति की जो कम से कम अपने स्वार्थ से अलग हट कर कुछ करने की सोच तो रहे है | दरअसल जब जन-लोकपाल जैसे मुद्दे को लेकर अन्ना जैसे व्यक्ति की बात को राजनीतिक कारणों से अनदेखी की गयी तो जाहिर है केजरीवाल के अनशन को लोग उतनी गम्भीरता से नही लेना एक कारण हो सकता है मगर इसका यह मतलब तो नहीं कि उनके अनशन को कोई तरजीह ही न मिले मीडिया अगर उनके अनशन को एक मुद्दा नही मान रही है तो तो उसे अपनी टीआरपी कि चिंता है फिर नये -नये करतब दिखाने के लिए आईपीएल जैसे खेल शुरू हो चुके है जाहिर है ड्राइंग रूम में बैठ कर क्रिकेट देख कर एक -एक चौको -छक्को पर ताली पीटना आम पब्लिक को ज्यादा आनन्द देगा उसके बाद बैठ कर हर खिलाडी का विश्लेष्ण करना ज्यादा रोमांचक लगता है तो भला बेचारे भूखे केजरीवाल को कौन देखने जायेगा और बेचारे वैसे भी बालीवुड के हीरो तो है नहीं कि आम पब्लिक उन्हें जा जा कर देखे !! जब अन्ना का अनशन दिल्ली में हुआ था तो हमें नहीं भूलना चाहिए कि उस समय तक अन्ना ने महाराष्ट्र में कितने -कितने दिनों का उपवास करके और आर टी आई जैसा कानून बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी अन्ना के साथ इन्ही केजरीवाल ने भी कितने दिनों तक लोकपाल लाने के कानून के लिए उनका साथ दिया था जाहिर है अन्ना का आन्दोलन एक अलग किस्म का आन्दोलन था उस समय तक जिस तरह के घपले -घोटाले हो रहे थे उसे ले कर हर व्यक्ति के मन में आक्रोश था और राजनीतिक व्यक्तियों कि अनुपस्थिति ने एक नये तरह का रूप धारण कर लिया था जिसके कारण अन्ना के आन्दोलन में भारी भीड़ जुटने लगी थी मगर अन्ना का आन्दोलन यदि कमजोर पड़ा तो क्यों ? क्योंकि कोई भी कानून संसद में ही पास हो कर बनता है | अन्यथा कमजोर कानून बनाने का कोई मतलब ही नहीं है इसलिए राजनीति में उतर कर ही संसद में पहुंच कर ही केजरीवाल एक मजबूत और जिम्मेदार भूमिका निभा सकते है इसलिए उनके अनशन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है
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