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बदलाव हर स्तर पर जरुरी

सीधी बात
सीधी बात
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जिस तेजी से विकास की सीढियाँ हम चढ़ रहे है उससे दुगुनी गति के साथ हमारा नैतिक पतन भी हो रहा है हम कहते है शासन ख़राब है ,प्रशासन ख़राब है मगर समाज की जिम्मेदारी क्या है ?कभी इसके बारे में सोचने की कोशिश हुयी है यह कैसा समाज है जहाँ नारी या तो देवी का अवतार है दूसरी तरफ मात्र शरीर है इस समाज के पतन का कारण क्या है प्यार एक ऐसा शब्द है जो जानवर को भी वश में करना सीखा देता है ;यह प्यार अब कही खो गया है भोगवादी संस्कृति के चलते आज हम एक ऐसे दौर में पंहुच चुके है जहाँ उपरी चमक -दमक ,आदर्शवाद का मुखौटा पहने हुए तथाकथित सम्भ्रांत लोगो की भीड़ है जो अन्दर से नराधम है ये जंगली पशु से भी गए बीते है निठारी कांड के बाद से जो लोगो के मुखौटे उतरने शुरू हुए तो एक लिजलिजे और सड़े – गले समाज का विद्रूप चेहरा सामने आया उसे देखकर मानवता भी शर्मसार हो गयी मगर वाह रे! हमारा समाज उस दिन के बाद से लगातार एक के बाद एक जिस तरह से दिल दहलाने वाली घटनाये सामने आ रही है उसने तो भारतीय समाज के भद्र्पन को चुनौती दे डाली दोष हमें लगता है कि फिर से कोई राम या कृष्ण अवतार लेंगे नहीं , अब हर मनुष्य को जागना होगा मीडिया बखूबी अपना काम निभा रहा है भले ही इस तरह कि न्यूज सुनकर हमें एक झटका लगता है लेकिन जरुरी है कि इस सोते हुए समाज को अब जगाया जाये किसी भी बच्ची या महिला के साथ होने वाली गलत घटना के दोषी को तुरंत सजा दी जाये एक महिला और माँ होने के नाते बेहद सकते में होने के बावजूद मुझे लगता है कि हम अक्सर फिल्मो को दोषी ठहराते है समाज के पतन के लिए मगर फिल्मे सिर्फ मनोरंजन के लिए बनती है ब्लू फिल्म तथा पोर्न फिल्म अब सहज ही उपलब्ध है जाहिर है स्त्री देह को ले कर भ्रमित युवा इन्ही फिल्मो में अपना सुख खोजते है दूसरी बात हम सभी लोग आस्थावान प्राणी है घर का माहौल यदि शांत और सहयोगात्मक बना रहे तो शायद युवा इस कदर भ्रमित न हो मगर क्या कोई लिखे और कहे हमारा सामाजिक ढांचा जिस कदर चरमराया है उसका भी कमोबेश खामियाजा महिलाओ को ही भोगना पड़ रहा है एक भीड़ जो गाँव को छोड़ शहर की ओर भाग रही है उसमे युवाओ को भ्रमित करने के लिए इतने साधन उपलब्ध है साथ ही सेक्स जैसे विषय को ले कर अधकचरी जानकारी ने पूरा मौका दे दिया है की वह किसी के भी साथ कुछ भी ज्यादती कर सकता है दरअसल सामाजिक बहिष्कार पहले एक बहुत बड़ा हथियार था किसी भी व्यक्ति को गलत दिशा में जाने से रोकने के लिए मगर विकास की इस अवधारणा में जब समाज ही टूट रहा हो तो भला सामाजिक बहिष्कार जैसी बातो का क्या अर्थ ? फिर भी समाज शास्त्रियों को इस नये प्रकार के अपराध की ओर बढ़ते हुए युवाओ को रोकने के लिए कुछ तो समाधान सोचना पड़ेगा नहीं तो यह मानसिक विकृति आने वाले दिनों में एक नये प्रकार के आतंकवाद को जन्म देगी जिसमे मनुष्य का मनुष्यत्व समाप्त हो रहा होगा और आसुरी प्रवृत्तियां हावी हो जाएँगी अतः समय रहते इस समस्या का समाधान ढूँढना जरुरी है |

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