Menu
blogid : 1448 postid : 381

परिवार ,समाज , परिवेश या सूचना तंत्रों का दुरूपयोग किसे दोष दे ????(jagran junction forum )

सीधी बात
सीधी बात
  • 103 Posts
  • 764 Comments

;बेहद समसयामिक तथा वर्तमान दौर में यक्ष प्रश्न बन कर हमारे सामने खड़ा है आखिर किसे दोष दे हम जिस तरह की घटनाये घट रही है क्या यह सुविधा तथा सम्पन्नता के अनेक सोपान तय करने के बाद उस समाज का एक भयानक तथा डरावना चेहरा हमारे सामने नहीं आ गया है जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी ? एक बच्चे को पालने में परिवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है मगर अब यह अवधारणा भी दम तोड़ रही है परिवार के सदस्य में बुजुर्ग अब दरकिनार हो रहे है अगर वर्किंग कपल है तो बच्चो के साथ कितना समय अब गुजार पा रहे है परिवार के बाद स्कूल की भूमिका के बारे में यदि बात करे तो यह समय अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है ज्यादातर व्यक्तित्व निर्माण का यही समय माना जाता है मगर इस समय भी यदि उन्हें प्रतिस्पर्धा की भावना से पढाई करनी पढ़ती है जाहिर है वे सिर्फ एक -दूसरे से होड़ लेने की शिक्षा प्राप्त करने में लग जाते है और सबसे गलत बात हो रही है वह है बचपन से ही उनके करियर को ले कर एक दवाब बना दिया जाता है जाहिर है यह बच्चे न प्रकृति से जुड़ पा रहे है न परिवार से उनका स्वभाविक विकास रुक चुका है टेक्न्लाजी के विकास ने जहाँ ज्ञान तथा जानकारी का दायरा बढाया है वही इसका दुरूपयोग भी बढ़ा है माता -पिता जन्म के साथी है कर्म के साथी तो नहीं है इसलिए किसी भी गलत काम के अंजाम में अपराधी को दंड दिया जा सकता है परिवार के साथ दंड की प्रक्रिया सर्वथा अनुचित है |
एक जगह मैंने पढ़ा कि मेडिकल की पढाई के लिए अपने बेटे की जगह दूसरे अभ्यर्थी को बिठा कर किसी तरह मेडिकल कालेज में दाखिला मिल जाने के बाद कही थंब चेक में जब उस महानुभाव के बेटे को मेडिकल की पढाई से निकाल दिया गया तो फिर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ मगर उनके बेटे की तो जिन्दगी ही बर्बाद हो गयी जब इस तरह के अभिभावक हो तो फिर किसी दूसरे को दंड देने की जरुरत ही नहीं जो खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेते है तो समाज का पतन तो हर स्तर पर हो रहा है जाहिर है इस तरह के समाज का निर्माण जब हो रहा है तो युवा भला क्यूँ न दिग्भ्रमित हो ! एक बहुत जरुरी बात जो आज के संदर्भ में जरुरी है ठीक है कुछ मामलो में पुलिस अपने कारवाई से हट जाती है मगर यह भी तो सोचने वाली बात है कि हम यह कैसा समाज बना रहे है जहाँ कदम -कदम पर हमें पुलिस कि जरुरत पड़ती है क्या माना जाये कि हम उस नागरिक की श्रेणी में आते है जहाँ हर मामले का निपटारा या तो पुलिस करे या फिर कानून आखिर भटकते हुए इन युवाओ को इस समाज को ही सहारा देना पड़ेगा सभी मामले को आप एक किनारे कीजिये आरुषी हत्याकांड में एक बच्चे की देख भाल करने में अभिभावक इतने असमर्थ थे कि उनकी बच्ची किस दिशा में जा रही है उन्हें खबर तक नहीं थी भले कोई कुछ भी कहे मगर समाज जो दरक रहा है उसकी जड़ में स्वयं कही न कही माता -पिता कि भूमिका भी शक के घेरे में आ चुका है इससे बुरा दौर और क्या होगा जबकि हमें बाहर के दुश्मन से कही ज्यादा खतरा अपने अंदर छुपे हुए उन पाशविक प्रवृत्तियों से हो चुका जिसका तुरंत निदान होना चाहिए दोषारोपण करके अपराध कि भयावहता को कम करके नहीं आँका जा सकता |
जो धर्म -कर्म को नहीं मानते है या जिनकी आस्था परमपिता परमेश्वर में नहीं है उन्हें समझना चहिये की किसी भी धर्म में यदि प्रार्थना तथा आस्था को जगह मिली है तो इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण यही है की मनुष्य जितना विवेकशील है उससे कही ज्यादा विवेकशून्य भी है थोडा ध्यान और योग मनुष्य को जानवर बनाने से रोक सकते है यह कोरी अवधारणा नहीं है यह एक सार्वभौमिक सत्य है और इसका पालन सभी को करना चाहिए तभी मनुष्य का मनुष्त्व बचेगा |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh