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मीडिया जागरूक करे न कि उद्वेलित (provoked ) ( jagran junction forum )

सीधी बात
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इसमें दो राय नहीं कि एक लोकतान्त्रिक देश में लोकतंत्र के चार मजबूत स्तम्भ के रूप में पत्रकारिता कि भूमिका सर्वविदित है बात यदि हम आजादी के दौर की करे तो रेडियो और अखबार ही वह माध्यम बना जिसके जरिये आजाद देश की सुनहरी किस्मत लिखी गयी जेलों में बंद देशभक्तों ने सिर्फ एक छोटी सी लेखनी के जरिये अपने देश सेवा के प्रति समर्पण की जो महान गाथाये लिखी परिणाम सामने है आज हम आजाद देश में अपने संविधान के जरिये हर दिन ,हर पल एक नये और विकास की दिशा में बढ़ते हुए नए दिन का अभिनन्दन कर रहे है | वह दौर जबकि पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था तब से लेकर आज के दिन तक में फिर ऐसा क्या हुआ कि कि पत्रकारिता एक मिशन न बन करके व्यवसाय बन चुका है यह ठीक है कि आज प्रेस हो या फिर इलेक्ट्रानिक माध्यम बहुत सी ऐसी खबरों को प्रकाश में लाता है जो समाज तथा नैतिक रूप से लोगो को प्रभावित भी करती है ,बहुत से ऐसे फैसले भी मीडिया की जागरूकता तथा सजगता के कारण अपने मुकाम या मंजिल तक भी पहुंचे जिसने समाज को झकझोर कर भी रख दिया | मगर कुछ मामलो में मीडिया अपनी हद भूल भी रहा है जबकि वह मात्र खबरों कि तह तक जाने के स्थान पर स्वयं निर्णायक कि भूमिका में जाने को आतुर हो जाता है |
यह सच है कि देश बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है भ्रष्ट्राचार ,घपले , घोटाले जिस तरह से रोज नए ,नए रूप में सामने आ रहे है उसने तो इस देश की नैतिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए है , इस समय विपक्ष को मजबूती के साथ अपनी भूमिका निभानी चाहिए सबसे बड़ी बात की संसद में जब लगातार गतिरोध बना रहेगा तो आम जनता भला इन सांसदों से क्या उम्मीद करे ? इस समय देश के प्रधानमन्त्री के रूप में एक अर्थशास्त्र के जानकर व्यक्ति ने भले ही देश की बागडोर संभाली हो उनके स्वयं के मंत्रिमंडल में तरह -तरह के नैतिक तथा सैद्यान्तिक रूप से भ्रष्ट लोग भरे पड़े है | ऐसे में विदेश नीति क्या हो ? बिना किसी मनमुटाव तथा दवाब के बिना हमें अपनी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करते हुए अपनी समस्याओ को निपटाना पड़ेगा जाहिर है पाकिस्तान जैसे मुल्क से निभाना तलवार की धार पर चलने के बराबर है सरबजीत जैसे मामले को जिस तरह से उठाया गया उसमे सुलझने के भला कितने चांस हो सकते थे पहली बात की बिना सुरक्षा कर्मियों की मुस्तैदी के कोई दूसरे देश की सीमा में कैसे चला गया ? अगर चला भी गया तो उसी समय इस प्रकार के मामले को तुरंत उसी तत्परता से मीडिया ने क्यों नहीं प्रसारित किया तीसरी बात आज भी अनेक कैदी पकिस्तान की जेलों में बंद है उनके लिए क्या किया जा रहा है ? सरबजीत और सुरजीत के नामो में अंतर के कारण कुछ दिनों पहले जिस तरह से पाकिस्तान ने पैतरा बदला उसने तो और भी स्तर पर कई सवाल खड़े कर दिए ? खबरों की सनसनी तथा हर चैनल के एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में पत्रकार अपना धर्म न भूले लोगो के सामने वास्तविकता लाना पत्रकारिता का पहला उद्देश्य होना चाहिए न की चूँकि आपके हाथ में कैमरा है आप हर मुद्दे को भुनाने की होड़ में लग जाये ! शहादत की बात की जा रही है शहीद किसे कहते है ?पहले स्पष्ट कीजिये भावनाओ के उबाल पर किसी भी तमगे की रोटी नहीं सेंकी जाती किस आधार पर भगत सिंह से सरबजीत की तुलना की जा रही है ?हद है देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले स्वतंत्रता सेनानी से उस व्यक्ति की तुलना करना जो शराब के नशे में किसी और देश की सीमा में पहुंच जाये उसे शहीद की श्रेणी में रखना कितना न्यायसंगत है ? कुछ फैसले जानकार और विद्वान् लोग करे तो बेहतर होगा मुम्बई हमलो के दौरान मेजर उन्निकृष्णन का जान गंवाना शहादत की श्रेणी में आता है | प्रधान मंत्री सडक योजना के दौरान मारे गए इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे ,इंडियन ऑइल के ईमानदार कर्मचारी मंजुनाथ की बेरहम हत्या को शहादत की श्रेणी में रखा जा सकता है जिन्होंने देश की सेवा करते हुए अपनी जान दी हर किसी को शहीद की श्रेणी में रखना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है |

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