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मुंबई प्रीति राठी को न्याय दिलाओ

सीधी बात
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अभी अपने देश की न्याय व्यवस्था को ले कर हम गौरान्वित हो रहे थे मगर जिस तरह से बांद्रा टर्मिनस पर एसिड एटैक में पिछले दिनों घायल प्रीति राठी नामकी बच्ची के गुनहगार को अभी तक मुंबई पुलिस पकड़ने में नाकामयाब रही उसे जानकर हैरानी तथा दुःख दोनों हो रहा है घटना बेहद खौफनाक तथा स्तब्ध करने वाली है कि किसी सिरफिरे तथा अर्ध विक्षिप्त युवक ने किस प्रकार से एक अनजान तथा अपनी जिन्दगी के सुनहरे ख्वाब को साकार करने वाली मासूम लड़की के सारे सपने को धुलधूसरित कर दिया यह पहली तरह की अनोखी घटना नहीं है , कुछ अर्से पहले भी इसी तरह से किसी सिरफिरे ने गेटवे ऑफ इण्डिया पर चाकुओं से दो नार्थ ईस्ट की लडकियों पर हमला करके घायल कर दिया था और भीड़ खड़ी हो कर तमाशा देखती रही इस तरह की घटनाओ से एक तो हमारे समाज का वह विद्रूप चेहरा सामने आ रहा है जहाँ की किसी में भी सहायता करने वाली मानवीय मूल्यों का लोप हो रहा है , हो सकता है विकास की सीढ़ी चढ़ने का यह महानगरीय फार्मूला हो जिसमे कोई किसी की सहायता करने में वक्त न जाया करके अपने ही दुनिया में मगन रहने का एक आसान रास्ता ढूंड रहा हो मगर अगर किसी महानगर में विकास का पैमाना यदि इस तरह की अमानवीय मूल्यों से हो कर गुजरता है तो यह समाजशास्त्रियो के लिए शोध का विषय होना चाहिए दूसरी बात मुंबई हमेशा से संघर्ष तथा कामयाबी से जुझते हुए युवाओ का शहर रहा है यहाँ के प्लेटफार्म पर रात बिताते हुए संघर्ष करते हुए भी लोगो ने बहुत सी कामयाबी तथा सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये है मगर हाल के दिनों में शीघ्रता से पैसा नाम और शोहरत कमाने की लालसा ने युवाओ के जुझारूपन को कम कर दिया है उम्र के नए दौर में प्रेम संबंधो का पनपना गलत नहीं है मगर खुबसूरत लड़की हमारी प्रेमिका हो इस तरह की मानसिकता के चलते अक्सर युवा अनजाने में ही किसी के साथ प्यार कर बैठते है और उस लड़की के न मिल पाने पर उन्हें हर सुन्दर लड़की से घृणा हो जाती है जाहिर है उन्हें अपना आक्रोश तथा गुस्सा निकालने का एक घृणित रास्ता मिल जाता है तो वह युवा इसी तरह की हरकत कर बैठते है या फिर परिवार में माता -पिता के बीच के संबंधो में कुछ ऐसा गलत होता होगा जिसकी परिणिति इतनी खौफनाक होती है | जो कुछ भी हो यहाँ प्रश्न रेलवे पुलिस की तत्परता तथा सजगता से जुड़ा हुआ है आखिर cctv कैमरे में इस तरह की घटना क्यों नहीं कैद हुयी ? और वह कौन सा असामाजिक तत्त्व था जिसने इस तरह की घटना को अंजाम दिया और आज तक उसका पता नहीं लग पाया यह चिंता का विषय है क्योंकि यदि मानसिक रूप से बीमार युवा अगर इस तरह का काम करता है तो आगे भी उसके निशाने पर इसी तरह की मासूम ,सुन्दर लडकिया होंगी | एक बात जो बहुत महत्त्वपूर्ण है वह है कि आज हम स्त्री -पुरुष संबंधो को ले कर एक नए तरह विचारो को ले कर आगे बढ़ रहे है हम समानता तथा बराबरी की बात करते है महिलाओ की आजादी तथा तथा उन्हें हर मोर्चे पर आगे बढ़ने की पुरजोर दलीले देते है जबकि सच तो यह है कि हर महिला या युवती अपने लिए स्वयं इस समाज से लेकर कार्य के हर क्षेत्र में अपनी मेहनत तथा योग्यता के कारण जगह बनाती है मगर नासमझ पुरुष प्रधान समाज अब उसे सहकर्मी तथा सामान्य भारतीय नारी की परिधि से बाहर निकलता देख उसे अपनी प्रतिद्वंदी मान बैठे है इसलिए नारी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है और यह कितने आश्चर्य तथा शर्म की बात है कि कायरो कि तरह कभी उसके शरीर को निशाना बनाया जा रहा है तो कभी उसके चेहरे और जीवन को मगर प्रीति को न्याय तो मिलना ही चाहिए |

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