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प्रासंगिकता बढ़ी किसकी भाजपा की या आडवाणी की ? (jagaran junction forum )

सीधी बात
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किसी भी देश के शासन में सत्ता पक्ष को रास्ते पर लाने के लिए या यूँ कहे एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की पहली शर्त है की मजबूत विपक्ष पूरी मुस्तैदी के साथ अपने राजधर्म को निबाहे लगातार अपना अंकुश बना कर रखे सत्ता पक्ष पर ताकि मनमाने ढंग से कार्य करने की प्रवृत्ति पर लगाम भी लगे तथा देश की जनता को भी एक मजबूत विपक्ष के रूप में एक ऐसी पार्टी मिल सके जो गलत नीतियों तथा अव्यवस्था को ले कर अपना विरोध दर्ज कराने में सफल हो सके मगर उस देश के बारे में क्या कहा जाये जहाँ भाजपा जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टी पूरी तरह से आंतरिक कलह में घिरी हुयी है | इसमें कोई दो राय नहीं की मोदी जैसे विकासपुरुष को आगे लाने का काम किया जा रहा है मगर आडवाणी जैसे बड़े तथा हमेशा पार्टी के लिए सेवा करने वाले एक बेहतरीन राजनीतिक समझ रखने वाले व्यक्तित्व को इस तरह से एक किनारे कर देने पर किसकी प्रासंगिकता कम हुयी है ? जिस पार्टी को वाजपेयी तथा आडवाणी ने मिल कर बड़ा किया हो क्या उसके लिए यह शर्म की बात नहीं है की उसके सबसे वरिष्ठ तथा योग्य नेता को को इस कदर अपमानित होना पड़ा की उन्हें अपने इस्तीफे के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया जिस पार्टी में इस तरह का अन्तर्विरोध हो उसे देशहित की क्या चिंता होगी प्रधानमन्त्री पद की दावेदारी क्षेत्रीय दल के नेता दावे के साथ कर सकते है मगर वही आडवाणी को नसीहत दी जा रही है की अपने उम्र को देखे दुर्भाग्य तो यह है कि इस तरह वैमनस्य तथा घृणा कि बाते फ़ैलाने में सोशल साइट्स तथा ट्विटर का सहारा लिया जा रहा है | कुछ गलती तो आडवाणी जी कि भी है कि उन्हें यदि प्रधानमन्त्री पद कि इच्छा है तो यह बात पार्टी के अन्दर सभी को क्यूँ नहीं पता है और जिस तरह से वाजपेयी जी को पीएम बनवाने में उनकी भूमिका थी उसी आधार पर उन्हें एक जुझारू नेता कि तरह अपनी छवि को बनाये रखना था | भले ही बाबरी विध्वंस के बाद हिन्दू वोट बैंक बढ़ा हो और इतना कि कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया हो मगर देश कि राजनीति में लगातार अपनी पैठ बनाये रखने के लिए विकास के नए आयाम गढ़ने होंगे इस काम में नरेन्द्र मोदी ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है और यही वजह है कि आज मोदी एक विकास पुरुष कि भांति नजर आ रहे है | सबसे बड़ी बात की किसी भी पार्टी के लिए आंतरिक गठबंधन का मजबूत होना तथा सहयोगी दलों को साथ ले कर चलना यह समय की मांग है इसके लिए वरिष्ठता तथा अनुभव दोनों होना चाहिए इसलिए मोदी भले ही आज के दौर में प्रासंगिक हो चुके हो आडवाणी जी को अप्रासंगिक नहीं कहा जा सकता और यह बात भाजपा को जितना शीघ्र समझ में जाये वह उसके हित के लिए है वर्ना वह दिन दूर नहीं की बड़ा विपक्ष और और सत्ता पक्ष दोनों एक किनारे बैठे होंगे और क्षेत्रीय दल जोड़ तोड़ करके देश की बागडोर संभालने की भूमिका में आ जायेंगे और वह समय इस देश के लिए बेहद घातक होगा क्योंकि मामूली खेल तथा अन्य किसी भी मंत्रालय की जिम्मेदारी मिल जाने पर जिस तरह से लूट मचती है उसके बारे में ज्यादा क्या लिखना इसलिए अपनी भूमिका के प्रति जवाबदेह बने पार्टी यह देश हित के लिए होगा |

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